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Saturday, 20 August 2016

फर्क सिर्फ सोच का होता है(Sweat Short Story)

एक छोटा सा बच्चा अपने दोनों हाथो में एक एक सेब लेकर खड़ा था 
उसके पापा ने मुस्कराते हुए कहा कि बेटा एक सब मुझे दे दो 

इतना सुनते ही उस बच्चे ने एक सेब को दांतो से कुतर लिया 
उसके पाप कुछ बोल पाते उसके पहले ही उसने अपने दूसरे सेब को भी दांतो से कुतर लिया।

अपने छोटे से बेटे की इस हरकत को देखकर बाप ठगा सा रह गया और उसके चेहरे पर मुस्कान गायब हो गई थी। 
तभी उसके बेटे ने अपने नन्हे हाथ आगे की ओर बढ़ाते हुए पापा को कहा 
पाप ये लो ये वाला ज्यादा मीठा है. शायद हम कभी कभी पूरी बाते जाने बिना निष्कर्ष पर पहुँच जाते है। 

किसी ने क्या खूब लिखा है 
नजर का आपरेशन तो सम्भव है 
पर नजरिये का नही.... ?

फर्क सिर्फ सोच का होता है..... 
वरना, वही सीढ़िया ऊपर भी जाती है और नीचे भी आती है।  

Saturday, 6 August 2016

अमर बलिदानी नानक भील 15 अगस्त विशेष

                 देश की आजादी के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले नानक भील का जन्म बूंदी जिले के धनेश्वर गांव में हुआ था पिता का नाम भेरूलाल भील था।  नानक अपने भाई बहिनो में सबसे बड़े थे। बचपन में ही माँ का साया सिर से उठ गया था।  परिवार की हालत ज्यादा अच्छी नही थी इसलिए नानक का बचपन सघर्स में ही निकला। इसी के साथ देशप्रेम के संस्कार भी उसे बचपन से ही मिल गए थे। वह हाथ में तिरंगा लिए देशप्रेम के गीत गाते हुए गलियो में घूमा करता था।

                उन दिनों देशी रियासतों के लोगो पर दोहरे अत्याचार हो रहे थे। इन रियायतों के राजा जमकर जनता का शोषण करते थे।  अंग्रेज भी उल्टे - सीधे जन -विरोधी आदेश इन रियायतों पर थोपते रहते थे। बूंदी रियासत में भी जनता पर तरह तरह के करो के बोझ लाद दिए गए।  कर लगान आदि न चुकाने पर रियासतों की फ़ौज लोगो पर अत्याचार करती थी।  किसानों का जीना दूभर हो गया था।  उन्ही दिनों क्रांतिकारी विजय सिंह पथिक बिजोलिया और बेंगू में किसानों को अपने हक के लिए लड़ने को प्रेरित कर रहे थे। इसी के साथ वे आजादी का भाव भी जन-मानस में जगा रहे थे।
 
               एक दिन सुबह के समय डाबी गांव में एक बरगद के पेड़ नीचे विशाल जनसभा आयोजित की गई।  जनसभा में सेकड़ो लोग एकत्रित हुए थे।  मंच पर नानक जोशीले नारे लगा रहे थे। वे विजय सिह पथिक द्वारा रचित गीत "प्राण मित्रो भले ही गवाना ,पर न झंडा नीचे झुकना "बुलन्द आवाज में गा रहे थे। गीत के अंत में नानक ने महात्मा गाँधी की जय का उद्घोष किया। पूरी सभा ने बुलंद आवाज में जय-कारा लगाया।

             इतने में बूंदी रियासत की पुलिस के मुखिया इकराम खान ने लोगो को चारो ओर से घेर लिया।  यह देख सभा में बैठे लोग उतेजित हो पुलिस और अंग्रेजी राज के खिलाफ नारे लगाने लगे।  इकराम खान अंग्रेजो का पिटठू था और किसी भी प्रकार किसान आंदोलन को दबाने के आदेश उसे दे दिए गए थे। उनसे आव देखा न ताव , तुरन्त गोली चलाने का हुक्म दे दिया। पहली गोली मंच पर गीत गा रहे नानक भील के सीने पर लगी और वे मंच पर ही शहीद हो गए। इसी समय जूझा भील ने इकराम खा की कनपटी पर जोर से लाठी  प्रहार किया। इकराम वही ढेर हो गया। इस  सभास्थल पर भगदड़ मच गई। इस बीच कुछ लोग नानक का शव चुपचाप पास के जंगल में ले गए। और जंगल में ही नानक के शव का दाह संस्कार कर दिया उस समय भारी सख्या में लोग वह पहुचे। जिस स्थान पर नानक भील को गोली लगी  थी , वहा पर उनकी स्मृति में एक छतरी बनाई गई।

             देश की आजादी की लड़ाई में बूंदी के नानक भील का बलिदान नि:संदेह ऐतिहासिक है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है की इस घटना के बाद इंग्लैंड की संसद में भी 'ट्रेजडी इन बूंदी स्टेट ' पर जोरदार चर्चा हुई थी। 













Friday, 1 July 2016

किसी भी चीज की अति ठीक नहीं होती

दो सहेलिया आपस में बात कर रही थी। एक ने कहा , मेरे पति दिनभर बक बक करते रहते है।  मेरे तो सिर में दर्द हो जाता है। दूसरी सहेली बोली मेरे पति तो हमेशा चुप रहते है , जैसे न बोलने की कसम खा रखी हो। उन दोनों ने एक दूसरे का दर्द सुनने के बाद तय किया की  समस्या को किसी महात्मा को बताएगी। हो सकता हो की कोई रास्ता निकल जाये।  वे एक महात्मा के पास गई और महात्मा को पूरी बात सुनाई। महात्मा ने दोनों को अपने पतियों को साथ लाने को कहा।  अगले दिन दोनों सहेलिया अपने पतियों के साथ महात्मा के पास आई। महात्मा ने कम बोलने वाले पति को अधिक बोलने की तथा अधिक बोलने वाले पति को कम बोलने की प्रतिज्ञा दिलवाई। दोनों ने महात्मा जी की बात मान ली.
                                                                   इस तरह  कम बोलने वाला पति ज्यादा बोलने लगा तथा ज्यादा बोलने वाला पति चुप रहने लगा।  लेकिन इससे भी उन सहेलियों की समस्या खत्म नहीं हुई। और एक बार फिर दोनों अपने पतियों को लेकर महात्मा के पास पहुंची।  पहली सहेली ने कहा की पहले ठीक था अब तो लगता है जैसे घर में अकेली में ही रहती हु मेरे पति तो चुप बैठे रहते है। दूसरी सहेली ने कहा पहले ठीक था कम  बोलते थे अब तो मेरे पति दिनभर बक बक करके मेरा दिमाग खराब कर देते है। यह सुनकर महात्मा ने सहेलियों और उनके पतियों को समझाया, देखो किसी भी चीज की अति ठीक नहीं होती है न ज्यादा बोलना अच्छा है और न ज्यादा चुप रहना अच्छा है। जीवन में समय और आवश्यकता के हिसाब से बोलना चाहिए और उसी के हिसाब से चुप रहना चाहिए। सहेलियों के पति इस बात को समझ गए। दोस्तों इसी प्रकार से हमे भी अपने जीवन में किसी भी चीज की अति नहीं करनी चाहिए अर्थात हमे अपने जीवन में चीजों के बीच संतुलन बनाकर रखना चाहिए। 

Wednesday, 29 June 2016

सम्मान पद से नहीं बल्कि अपने स्वभाव से मिलता है।

एक बार सिकंदर किसे कारण से अपने सेनापति से नाराज हो गया। उसने उसे सूबेदार बना दिया। सिकंदर ने सोचा कि इतने छोटे पद पर आने से उसका सेनापति अपमानित महसूस करेगा और घुट- घुटकर मर जायेगा। 
                                              एक दिन उसने सेनापति को बुलवाया।  ताकि यह देख सके कि उसकी क्या हालत है। सिकंदर उसे खुश देखकर हैरान रह गया। उसने उसे पूछा, तुम इतना खुश कैसे दिखाई दे रहे हो ? सेनापति से बनने का तुम्हे कोई दुःख नहीं है ? सेनापति ने कहा, 'बिल्कुल नहीं। पहले जब में सेनापति था, तो सैनिक मुझसे बात करने से कतराते थे।  में भी अपने पद की मर्यादा का ध्यान रखकर उनसे बात करने से कतराता था। पर अब तो कोई संकोच रहा ही नहीं।  अब मै उनसे खुलकर बात करता हु  वे भी मुझसे एकदम सहज रहते है , वे अब भी मेरा सम्मान करते है , और हम एक-दूसरे की सेवा में लगे रहते है। में समझ गया कि सम्मान पद से नहीं बल्कि अपने स्वभाव से मिलता है।  जिसमे थोड़ी भी मानवीयता होगी उसे सारी दुनिया आदर देगी।  दुःख तो उन्हें होता है , जो पद के अभिमानी  होते है।  सिकंदर इस जवाब से बेहद प्रभावित हुआ।  उसने उसे फिर से अपना सेनापति बना लिया।

Friday, 24 June 2016

एक बच्चे का मन (Ek Bache Ka Man)

          एक बच्चे का मन 

सागर जो की एक 5-6 वर्ष का बच्चा  है ! अपने पड़ोस में दूसरे बच्चो के साथ मिलकर खेल रहा था ! बच्चे मन लगाकर खेल रहे थे तभी सागर के पिता जी वहा आते है सागर के पिता जी का नाम राम है !
पिता :- बेटे सागर चलो घर चलो दिन के २ बज गए है  और गर्मी भी बहुत               है मेरे साथ चलो घर चल कर थोड़ी देर सो जाते है !
सागर :- कुछ नही बोलता बस  पिता जी की बात सुनकर चुप हो जाता है 
पिता :-  बेटे अभी चलो शाम को वापस खेलने आ जाना !
सागर:-  पापा , मुझे और खेलना है !
पिता :-   बेटे चलो मेरे साथ (थोड़ा गुस्से से )
सागर उठता है और अपने पिता जी के साथ-साथ चलता है दोनों अपने घर की ओर जाते है आगे सागर और पीछे पिता जी दोनों घर के दरवाजे तक पहुँचते है ! परन्तु सागर का मन बिल्कूल घर जाने का नही था इसका मन तो खेलने में था !
पिता :- चलो बेटे अंदर चलो !
सागर :- मासूम सा मुह बनाकर एकदम भोला बनकर बोला पापा आप पहले अंदर चलो फिर मै आपके पीछे अंदर आता हु !
पिता :- चलो ठीक है !
            पिता दरवाजा खोलकर जैसे ही अंदर की तरफ मुड़ते है और अंदर चले जाते है ! पीछे देखते है तो सागर वहा नही दिख रहा था पिता जी वापस बाहर आकर इधर-उधर देखते है  परन्तु सागर उन्हें कही दिखाई नही देता है !
            परन्तु रेगिस्तान की मिट्टी में पेरो के निशान बहुत साफ दिखाई दे रहे थे  कि छोटे-छोटे पाँव कही जा रहे थे यह सागर के पेरो के ही निशान थे ! पिता जी पेरो के निशान पर चलते हुए उसी पड़ोस के घर में पहुंच जाते है  जहा से वह सागर को थोड़ी देर पहले लेकर आये थे !
            पिता वहाँ जाकर देखते है तो वह हँसने लगते है क्योकि सब बच्चे उनमे सागर भी शामिल था बड़े मजे से खेल रहे थे ! पिता जी सागर को खेलता देख मुस्कराते हुए बिना कुछ कहे घर आ जाते है !
            इससे हमें यह सिख मिलती है की बड़ो का मन भी बच्चो जैसा होना चाहिए तभी हम जिस काम में हमारा मन लगेगा उसे सफलतापूर्वक कर पायेगे और अपनी मंजिल को पा सकेंगे तो दोस्तों अगर सफल होना है अपनी मंजिल को पाना है  तो बच्चे बन जाओ !






संगत का असर (Sangat Ka Asar)

   संगत का असर

  1. एक समय की बात है ! एक राहगीर भारत - भर्मण पर था ! मार्ग में उसे प्यास लगी ! काफी चलने पर उसे एक छोटा सा घर दिखाई दिया ! उसने सोचा की वहा  पानी जरूर मिलेगा , लेकिंग नजदीक पहुंचा तो उसे गालियो की आवाजे सुनाई देने लगी ! रुक कर उसने देखा कि  बरामदे के भीतर से एक तोता उसकी और देखकर उसे गालियां दे रहा है ! वह कह रहा है, की तू क्या सोचता है  की मेरा मालिक यहाँ नही है , इसलिए तू चोरी करेगा ? वह आएगा और तेरा सिर अभी काट देगा ! मै पिंजरे में बंद हु , नही तो तेरी आँखे ही नोच डालता ! राहगीर घबरा गया और सोचने लगा की यही इतना क्रूर है  तो इसका मालिक कितना क्रूर होगा ?  वह वहा  से चला आया ! कुछ दूर चलने पर उसे एक कुटिया नजर आई ! वह उसके पास पंहुचा तो वहा  पर भी उसे एक तोता पिंजरे में मिला ! घबराहट में वह उलटे कदम मुड़ने लगा ! राहगीर को वापस जाता देख कर बड़े प्यार से तोते ने कहा , हे पथिक, आइए ! थोड़ी देर में मेरे मालिक आने वाले है! आप को देखकर लगता है कि आप प्यासे है ! मै तो पिंजरे में बंद हु , आपको स्वयं ही कष्ट करना होगा ! उधर मटकी में शीतल जल है ! आप पानी पीकर आराम करे ! राहगीर असमजस्य में पड़ गया ! अभी थोड़ी देर पहले ऐसे ही पिंजरे में बंद तोते ने कितने अपशब्द कहे और एक यह तोता है  कितना मीठा बोल रहा है ! तभी तोता बोला, घबराइये मत ! हो सकता है आपने कुछ देर पहले मेरे ही जैसा तोता देखा हो, जिसने अपशब्द कहे हो और आपका अपमान किया हो ! लेकिन इसमें उसका कोई दोष नहीं ! असल में वह मेरा भाई है ! उसे कसाई ले गया और मुझे इस कुटिया में साधु अपने साथ ले आये ! मेरा भाई सारा दिन उस घर में मार काट की बाते और गालिया सुनता रहता है ! उसका स्वभाव भी वैसा ही हो गया ! मै यहॉ सत्संग सुनता रहता हूँ और संत का सम्मानजनक व्यवहार देखता रहता हु ! यह सब संगति  प्रभाव है !

एक ही फूंक से ठंडा और गर्म करना

एक ही फूंक से ठंडा और गर्म करना 


एक बार एक आदमी घने जंगल में रास्ता भटक गया ! यहाँ- वहा रास्ता ढूंढ़ते उसे बहुत रात हो गई ! सर्दी का मौसम था ! वह भूखा और प्यासा ठंड से ठिठुरता हुआ अँधेरे में ठोकरे खाता रहा ! कहीं  दूर उसे रौशनी दिखाई दी ! वह इस और यह सोचकर चल दिया की उसे लगा की किसी लकड़हारे की झोपडी होंगी ! रौशनी एक गुफा के भीतर से आ रही थी ! वह आदमी गुफा के भीतर घुस गया ! उसने देखा की यह  एक राक्षस की गुफा थी !  " मै  इस जंगल में रास्ता भटक गया हु और बहुत थक गया हु ! " आदमी ने राक्षस से कहा , क्या मै आपकी गुफा में रातभर के लिए ठहर सकता हु !"  राक्षस ने कहा , आओ यहाँ आग के पास बैठ जाओ ! आदमी आग के पास जाकर बैठ गया ! उसकी अंगुलिया ठण्ड से नीली पड़ गई थी ! वह अपनी अंगुलियों पर मुह से गर्म हवा फूंककर उन्हें गर्म करने लगा ! राक्षस ने पूछा , तुम अपनी अंगुलियों और क्यों फूंक रहे हो ? आदमी बोला क्योकि मेरी अंगुलिया बहुत ठंडी है , इसलिए मै फूंक मारकर उन्हें गर्म कर रहा हुँ !  राक्षस ने पूछा , की क्या ये इससे गर्म हो जायंगी ? आदमी ने बोला , हम मनुष्य लोग ऐसा ही करते है ! राक्षस ने कुछ नही कहा !

                              कुछ देर बाद वह गुफा के भीतर गया और आदमी के लिए कटोरे में खाने की कोई चीज लेकर आया ! खाना इतना गर्म था की आदमी उसे खा नही सकता था ! वह कटोरे में फूंक  मारकर उसे ठंडा करने लगा ! राक्षस ने पूछा क्या खाना गर्म है ? आदमी बोला नही खाना तो बहुत गर्म है ! राक्षस ने पूछा , तो तुम फूंक क्यों दे रहे हो ? आदमी बोला , इसे ठंडा करने के लिए ! राक्षस चिलाया और बोला , तुम फौरन मेरी गुफा से बाहर निकल जाओ मुझे तुम से डर लगता है क्योकि तुम एक ही  फूंक से गर्म और ठंडा कर सकते हो !  


         

सभी जीव इस सृष्टि में एक दूसरे पर निर्भर है

सभी जीव इस सृष्टि में एक दूसरे पर निर्भर है 


बहुत समय पहले की बात है ! एक राज्य के नागरिक पक्षियों से बहुत परेशान थे ! वे उनके खेत- खलियान बर्बाद कर देते थे ! एक दिन नागरिक अपना दुखड़ा लेकर राजा के पास गए ! सुनकर राजा भी क्रोधित हुआ और उसके एलान कर दिया की राज्य के सारे पक्षियों को मार दिया जाये ! आदेश का पालन हुआ और धीरे - धीरे राज्ये के सारे पक्षि समाप्त हो गए ! अगले वर्ष जब लोगो ये अपने - अपने खेतो में अनाज बोया तो एक दाना भी नही उगा ! उसका कारण था की मिट्टी में जो कीड़े थे उन्होंने बीज खा लिए ! पहले तो पक्षी ऐसे कीड़ो को खा जाया करते थे और फसल की रक्षा होती थी ! फसल पैदा न होने से राज्य में त्राहि - त्राहि मच गयी ! नागरिको को जब इसका ज्ञान हुआ तो वे अपनी करनी पर पछताने लगे और फिर राजा के पास जा पहुंचे ! सर्वसमति से यह तय किया गया कि दूसरे राज्ये से पक्षी मंगवाए जाये ! बड़ी संख्या में पक्षियों के आ जाने से स्थिति में सुधार होना शुरू हुआ ! खेत -खलियान लहलहाने लगे ! अब लोग समझ गए कि सभी जीव इस सृष्टि में एक दूसरे पर निर्भर है !

                   

परमात्मा का पता (Prmatama Ka Pata)

        परमात्मा का पता  




स्वामी रामतीर्थ विदेश यात्रा से लोटे ! गढ़वाल के राजा उनके भक्त थे ! उन्होंने स्वामी रामतीर्थ से प्राथना की , कोई ऐसा मार्ग बताये जिससे मुझे परमात्मा के दर्शन हो जाये ! रामतीर्थ ने कहा आपको परमात्मा के दर्शन करवा दुगा ! बस  आप अपना नाम और पता दे दें  ताकि में वह परमात्मा तक पंहुचा सकु ! राजा ने अपना नाम और पता लिख कर उन्हें दे दिया ! तब रामतीर्थ ने पूछा , "क्या आप साठ साल पहले यही थे , और क्या पचास साल बाद भी आपका पता यही रहेगा ? " राजा ने हैरान होकर कहा , क्या बात करते है  आप , साठ साल पहले तो मेरा जन्म ही नही हुआ था !और पचास साल बाद में रहुगा की नही यह कौन जनता है ! स्वामी जी ने कहा, " जब आपको अपना ही पता नहीं , तब परमात्मा का पता कैसे पाएंगे ? पहले अपना पता कर ले, परमात्मा दर्शन अपने आप हो जायेगे !"

क्रोध (Krodh)

                                    क्रोध 




  • एक बार श्री कृष्ण बलदेव एव सात्यकि रात्रि के समय रास्ता भटक गए ! निर्णय हुआ की घोड़ो को बांधकर यहीं
  • विश्राम किया जाये ! तय हुआ की तीनो बारी -बारी  जाग कर पहरा देंगे ! सबसे पहले सात्यिक जागे बाकि दोनों सो गए ! एक पिशाच पेड़ से उतरा और सात्यिक को मलयुध के लिए ललकारने लगा ! पिशाच की ललकार सुनकर सात्यिक अत्यंत क्रोधित हुए और दोनों में मलयुध होने लगा ! जैसे- जैसे पिशाच क्रोध करता सात्यकि दोगुने क्रोध से लड़ने लगता ! सात्यिक जितना अधिक क्रोध करते उतना ही पिशाच का आकार बढ़ता जाता ! सात्यिक को बहुत चोटे आई ! इस प्रकार एक प्रहर बीत गया अब बलदेव जागे ! सात्यिक ने उन्हें कुछ नही बताया और सो गए ! बलदेव को भी पिशाच को ललकार सुनाई दी ! बलदेव क्रोधपूर्वक पिशाच से भिड़ गए ! उनका भी सात्यिक जैसा हाल हुआ ! अब श्री कृष्ण के जागने की बारी थी ! बलदेव ने भी उन्हें कुछ नही बताया और सो गए ! श्री कृष्ण के सामने भी पिशाच की चुनौती आई ! पिशाच जितने अधिक क्रोध में श्री कृष्ण को सम्बोधित करता श्री कृष्ण उतने ही शांत - भाव से मुस्करा देते पिशाच का आकार घटता जाता ! अंत में पिशाच का आकार  घटते- घटते एक कीड़े जितना रह गया , जिसे श्री कृष्ण ने अपने पटुके के छोर  में बांध लिया ! श्री कृष्ण ने कहा क्रोध का प्रतिकार क्रोध से न देकर शांत -भाव से दिया जाये तो सामने वाला बोखला कर दुर्बल हो जाता है !

Thursday, 6 August 2015

ईश्वर हमे देखता है

       एक गुरु ने अपने शिष्यों से कहा, "तुम में से सबसे अधिक योग्य को मै अपनी कन्या सौपना चाहता हु ! अतः पन्द्रह दिन के भीतर तुम में से जो मेरी पुत्री के लिए उसकी पसन्द का कपड़ा और गहना लेकर लौटेगा , उसी के हाथ में अपनी कन्या का हाथ सौप दुगा ! परन्तु एक शर्त यह की इस कपड़े और गहने लाने का पता केवल लाने वाले को छोड़कर किसी और को यहाँ तक तुम्हारे माता - पिता को भी न चले !" सभी शिष्य उत्साह में भरकर गर्दन हिलाते हुए चल पड़े !

      पन्द्रह दिन बाद सभी शिष्य सुन्दर - सुन्दर कपड़े और कीमती आभूषण लेकर गुरु जी के सामने उपस्थित हो गए ! सबने विश्वास दिलाया की इस सामान के विषय में माता-पिता को रती भर ज्ञान नहीं है ! किन्तु यह क्या कि एक शिष्य खाली हाथ लोट रहा है ! गुरु जी ने उसी से पहले पूछा , " तुम तो खाली हाथ आये हो ! क्या तुम्हारे घर में कुछ नही था !" शिष्य बोला , " गुरुदेव  घर में तो बहुत कुछ है ! माता - पिता से छिपाकर बहुत कपड़े और आभूषण ला सकता था किन्तु आप ने तो कहा था कि ईश्वर सर्वत्र है , वह हमारे प्रत्येक काम को देखता है ! उससे हमारा कुछ छिपा नहीं है ! तो यदि मै चुराकर लाता तो माता -पिता भले ही न देखते , वह ईश्वर देख ही लेता ! इसलिए में कुछ नहीं  ला सका  !

     गुरूजी ने कहा , " यह पाठ तो इन शिष्यों को भी पढ़ाया था ! ये तो पाठ को भूल गए ! किन्तु तुम्हे याद रहा ! तो अपनी कन्या का हाथ मै तम्हे ही सौपता हूँ !"
  

सच्चा तपस्वी

        एक साधु थे ! तप करते- करते बाल भी सफेद हो चुके थे ! एक दिन वे एक पेड़ के निचे बैठे अपने शिष्यों को उपदेश दे रहे थे , " मनुष्य में अहंकार अर्थात घमंड नही होना चाहिए ! उसका सच्चा रूप तो विनम्रता है !" कुछ देर बाद एक शिष्य ने पूछा , "गुरूजी , कहते है - ज्ञान की कोई सीमा नही है ! आप से ज्ञान प्राप्त करने के बाद हमे ऐसे कौन से तपस्वी के पास जाना चाहिए जो आपसे अधिक ज्ञानी हो !
    
         साधु को शिष्य की यह वाणी कड़वी लगी , बोले " मैने जीवन भर तप किया है ! मेरे सूखे और सफेद बालो से तुम इसका अनुमान लगा सकते हो ! फिर भला मुझसे बढ़कर तपस्वी और ज्ञानी और कौन हो सकता है ?

          जिस वृक्ष के नीचे यह साधु उपदेश दे रहे थे , उस पर तोता-मैना भी बैठे साधु की यह बात सुन रहे थे ! बोले - "यह कैसा साधु है ? अभी कह रहा थे की घमंड कभी नही करना चाहिए जबकि स्वयं की तपस्या पर इतना घमण्ड है ! शायद इसे पता नही कि विनम्रता क्या होती है ? अगर यह पुष्कर साधु के पास जाए तो पता चल जाए कि कौन सच्चा और बड़ा तपस्वी है ?"

           यह साधु पक्षियों को बोली समझते थे ! सुनते ही क्रोध में पुष्कर के साधु से मिलने चल पड़े जब यह साधु पुष्कर के उस आश्रम में पहुंचे तो देखा की वह साधु एक चबूतरे पर बैठे शिष्यों को उपदेश दे रहे है  ! साधु निकट पहुंचकर क्रोध से बोले , तुम मुर्ख हो , धूर्त और पाखण्डी हो ! एक अनजान साधु के मुख से ये शब्द सुनकर शिष्य तो क्रोधित हो गए परन्तु शिष्य कुछ कहते , इससे से पूर्व ही साधु चबूतरे से नीचे आकर बोले, महात्मन !सचमुच ज्ञानी तो आप है आपने मुझे नया ज्ञान दिया है ! मेरे आसन पर तो आपको बैठना चाहिए ! मेरा स्थान तो नीचे है ! पुष्कर के साधु की विनम्रता को देखकर वह साधु पानी - पानी हो गए और बोले , जो क्रोध में भी ज्ञान का दीप जला ले , उससे महान भला और कौन हो सकता है ? सच्चे तपस्वी तो आप है !