Thursday 6 August 2015

ईश्वर हमे देखता है

       एक गुरु ने अपने शिष्यों से कहा, "तुम में से सबसे अधिक योग्य को मै अपनी कन्या सौपना चाहता हु ! अतः पन्द्रह दिन के भीतर तुम में से जो मेरी पुत्री के लिए उसकी पसन्द का कपड़ा और गहना लेकर लौटेगा , उसी के हाथ में अपनी कन्या का हाथ सौप दुगा ! परन्तु एक शर्त यह की इस कपड़े और गहने लाने का पता केवल लाने वाले को छोड़कर किसी और को यहाँ तक तुम्हारे माता - पिता को भी न चले !" सभी शिष्य उत्साह में भरकर गर्दन हिलाते हुए चल पड़े !

      पन्द्रह दिन बाद सभी शिष्य सुन्दर - सुन्दर कपड़े और कीमती आभूषण लेकर गुरु जी के सामने उपस्थित हो गए ! सबने विश्वास दिलाया की इस सामान के विषय में माता-पिता को रती भर ज्ञान नहीं है ! किन्तु यह क्या कि एक शिष्य खाली हाथ लोट रहा है ! गुरु जी ने उसी से पहले पूछा , " तुम तो खाली हाथ आये हो ! क्या तुम्हारे घर में कुछ नही था !" शिष्य बोला , " गुरुदेव  घर में तो बहुत कुछ है ! माता - पिता से छिपाकर बहुत कपड़े और आभूषण ला सकता था किन्तु आप ने तो कहा था कि ईश्वर सर्वत्र है , वह हमारे प्रत्येक काम को देखता है ! उससे हमारा कुछ छिपा नहीं है ! तो यदि मै चुराकर लाता तो माता -पिता भले ही न देखते , वह ईश्वर देख ही लेता ! इसलिए में कुछ नहीं  ला सका  !

     गुरूजी ने कहा , " यह पाठ तो इन शिष्यों को भी पढ़ाया था ! ये तो पाठ को भूल गए ! किन्तु तुम्हे याद रहा ! तो अपनी कन्या का हाथ मै तम्हे ही सौपता हूँ !"
  

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