Friday, 7 August 2015

छोटा और बड़ा दुख

         
एक बार एक नवयुवक अपने गुरु से बोला, ' गुरु जी मै अपनी जिंदगी से बहुत परेशान हूँ , कृपया इस परेशानी से निकलने का उपाय बताए ! गुरूजी बोले, ' पानी से भरे इस लोटे में एक मुठी नमक डालो और उसे 
पियो !' युवक ने ऐसा ही किया ! 'इसका स्वाद कैसा लगा ? ' गुरु ने पूछा ! युवक थूकते हुए बोला बहुत ही खारा ! गुरूजी मुस्कराते हुए बोले, ' एक बार फिर अपने हाथ में एक मुठी नमक लेलो और मेरे पीछे-पीछे आओ !' दोनों धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे और थोड़ी दूर जाकर स्वच्छ पानी से बनी झील के सामने रुक गए ! 'चलो अब इस नमक को पानी में डाल दो !' गुरूजी ने निर्देश दिया ! युवक ने ऐसा ही किया ! गुरूजी बोले अब इस झील का पानी पियो ! युवक पानी पिने लगा ! एक बार फिर गुरूजी ने पूछा, 'बताओ इसका स्वाद कैसा है ? क्या अब भी तुम्हे ये खारा लग रहा है ?'  युवक बोला, 'नही ,ये तो मीठा है , बहुत अच्छा है। ' गुरूजी युवक का हाथ थामते हुए बोले 'जीवन के दुख बिलकुल नमक की तरह है।  न इससे कम और न ज्यादा !'  ये इस पर निर्भर करता है कि हम उसे किस पात्र में डाल रहे है।  इसलिए जब तुम दुखी हो तो सिर्फ इतना कर सकते हो कि खुद को बड़ा कर लो !लोटा मत बने रहो, झील बन जाओ। 

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