Saturday 6 August 2016

अमर बलिदानी नानक भील 15 अगस्त विशेष

                 देश की आजादी के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाले नानक भील का जन्म बूंदी जिले के धनेश्वर गांव में हुआ था पिता का नाम भेरूलाल भील था।  नानक अपने भाई बहिनो में सबसे बड़े थे। बचपन में ही माँ का साया सिर से उठ गया था।  परिवार की हालत ज्यादा अच्छी नही थी इसलिए नानक का बचपन सघर्स में ही निकला। इसी के साथ देशप्रेम के संस्कार भी उसे बचपन से ही मिल गए थे। वह हाथ में तिरंगा लिए देशप्रेम के गीत गाते हुए गलियो में घूमा करता था।

                उन दिनों देशी रियासतों के लोगो पर दोहरे अत्याचार हो रहे थे। इन रियायतों के राजा जमकर जनता का शोषण करते थे।  अंग्रेज भी उल्टे - सीधे जन -विरोधी आदेश इन रियायतों पर थोपते रहते थे। बूंदी रियासत में भी जनता पर तरह तरह के करो के बोझ लाद दिए गए।  कर लगान आदि न चुकाने पर रियासतों की फ़ौज लोगो पर अत्याचार करती थी।  किसानों का जीना दूभर हो गया था।  उन्ही दिनों क्रांतिकारी विजय सिंह पथिक बिजोलिया और बेंगू में किसानों को अपने हक के लिए लड़ने को प्रेरित कर रहे थे। इसी के साथ वे आजादी का भाव भी जन-मानस में जगा रहे थे।
 
               एक दिन सुबह के समय डाबी गांव में एक बरगद के पेड़ नीचे विशाल जनसभा आयोजित की गई।  जनसभा में सेकड़ो लोग एकत्रित हुए थे।  मंच पर नानक जोशीले नारे लगा रहे थे। वे विजय सिह पथिक द्वारा रचित गीत "प्राण मित्रो भले ही गवाना ,पर न झंडा नीचे झुकना "बुलन्द आवाज में गा रहे थे। गीत के अंत में नानक ने महात्मा गाँधी की जय का उद्घोष किया। पूरी सभा ने बुलंद आवाज में जय-कारा लगाया।

             इतने में बूंदी रियासत की पुलिस के मुखिया इकराम खान ने लोगो को चारो ओर से घेर लिया।  यह देख सभा में बैठे लोग उतेजित हो पुलिस और अंग्रेजी राज के खिलाफ नारे लगाने लगे।  इकराम खान अंग्रेजो का पिटठू था और किसी भी प्रकार किसान आंदोलन को दबाने के आदेश उसे दे दिए गए थे। उनसे आव देखा न ताव , तुरन्त गोली चलाने का हुक्म दे दिया। पहली गोली मंच पर गीत गा रहे नानक भील के सीने पर लगी और वे मंच पर ही शहीद हो गए। इसी समय जूझा भील ने इकराम खा की कनपटी पर जोर से लाठी  प्रहार किया। इकराम वही ढेर हो गया। इस  सभास्थल पर भगदड़ मच गई। इस बीच कुछ लोग नानक का शव चुपचाप पास के जंगल में ले गए। और जंगल में ही नानक के शव का दाह संस्कार कर दिया उस समय भारी सख्या में लोग वह पहुचे। जिस स्थान पर नानक भील को गोली लगी  थी , वहा पर उनकी स्मृति में एक छतरी बनाई गई।

             देश की आजादी की लड़ाई में बूंदी के नानक भील का बलिदान नि:संदेह ऐतिहासिक है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है की इस घटना के बाद इंग्लैंड की संसद में भी 'ट्रेजडी इन बूंदी स्टेट ' पर जोरदार चर्चा हुई थी। 













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