एक बच्चे का मन
सागर जो की एक 5-6 वर्ष का बच्चा है ! अपने पड़ोस में दूसरे बच्चो के साथ मिलकर खेल रहा था ! बच्चे मन लगाकर खेल रहे थे तभी सागर के पिता जी वहा आते है सागर के पिता जी का नाम राम है !
पिता :- बेटे सागर चलो घर चलो दिन के २ बज गए है और गर्मी भी बहुत है मेरे साथ चलो घर चल कर थोड़ी देर सो जाते है !
सागर :- कुछ नही बोलता बस पिता जी की बात सुनकर चुप हो जाता है
पिता :- बेटे अभी चलो शाम को वापस खेलने आ जाना !
सागर:- पापा , मुझे और खेलना है !
पिता :- बेटे चलो मेरे साथ (थोड़ा गुस्से से )
सागर उठता है और अपने पिता जी के साथ-साथ चलता है दोनों अपने घर की ओर जाते है आगे सागर और पीछे पिता जी दोनों घर के दरवाजे तक पहुँचते है ! परन्तु सागर का मन बिल्कूल घर जाने का नही था इसका मन तो खेलने में था !
पिता :- चलो बेटे अंदर चलो !
सागर :- मासूम सा मुह बनाकर एकदम भोला बनकर बोला पापा आप पहले अंदर चलो फिर मै आपके पीछे अंदर आता हु !
पिता :- चलो ठीक है !
पिता दरवाजा खोलकर जैसे ही अंदर की तरफ मुड़ते है और अंदर चले जाते है ! पीछे देखते है तो सागर वहा नही दिख रहा था पिता जी वापस बाहर आकर इधर-उधर देखते है परन्तु सागर उन्हें कही दिखाई नही देता है !
परन्तु रेगिस्तान की मिट्टी में पेरो के निशान बहुत साफ दिखाई दे रहे थे कि छोटे-छोटे पाँव कही जा रहे थे यह सागर के पेरो के ही निशान थे ! पिता जी पेरो के निशान पर चलते हुए उसी पड़ोस के घर में पहुंच जाते है जहा से वह सागर को थोड़ी देर पहले लेकर आये थे !
पिता वहाँ जाकर देखते है तो वह हँसने लगते है क्योकि सब बच्चे उनमे सागर भी शामिल था बड़े मजे से खेल रहे थे ! पिता जी सागर को खेलता देख मुस्कराते हुए बिना कुछ कहे घर आ जाते है !
इससे हमें यह सिख मिलती है की बड़ो का मन भी बच्चो जैसा होना चाहिए तभी हम जिस काम में हमारा मन लगेगा उसे सफलतापूर्वक कर पायेगे और अपनी मंजिल को पा सकेंगे तो दोस्तों अगर सफल होना है अपनी मंजिल को पाना है तो बच्चे बन जाओ !
पिता :- बेटे सागर चलो घर चलो दिन के २ बज गए है और गर्मी भी बहुत है मेरे साथ चलो घर चल कर थोड़ी देर सो जाते है !
सागर :- कुछ नही बोलता बस पिता जी की बात सुनकर चुप हो जाता है
पिता :- बेटे अभी चलो शाम को वापस खेलने आ जाना !
सागर:- पापा , मुझे और खेलना है !
पिता :- बेटे चलो मेरे साथ (थोड़ा गुस्से से )
सागर उठता है और अपने पिता जी के साथ-साथ चलता है दोनों अपने घर की ओर जाते है आगे सागर और पीछे पिता जी दोनों घर के दरवाजे तक पहुँचते है ! परन्तु सागर का मन बिल्कूल घर जाने का नही था इसका मन तो खेलने में था !
पिता :- चलो बेटे अंदर चलो !
सागर :- मासूम सा मुह बनाकर एकदम भोला बनकर बोला पापा आप पहले अंदर चलो फिर मै आपके पीछे अंदर आता हु !
पिता :- चलो ठीक है !
पिता दरवाजा खोलकर जैसे ही अंदर की तरफ मुड़ते है और अंदर चले जाते है ! पीछे देखते है तो सागर वहा नही दिख रहा था पिता जी वापस बाहर आकर इधर-उधर देखते है परन्तु सागर उन्हें कही दिखाई नही देता है !
परन्तु रेगिस्तान की मिट्टी में पेरो के निशान बहुत साफ दिखाई दे रहे थे कि छोटे-छोटे पाँव कही जा रहे थे यह सागर के पेरो के ही निशान थे ! पिता जी पेरो के निशान पर चलते हुए उसी पड़ोस के घर में पहुंच जाते है जहा से वह सागर को थोड़ी देर पहले लेकर आये थे !
पिता वहाँ जाकर देखते है तो वह हँसने लगते है क्योकि सब बच्चे उनमे सागर भी शामिल था बड़े मजे से खेल रहे थे ! पिता जी सागर को खेलता देख मुस्कराते हुए बिना कुछ कहे घर आ जाते है !
इससे हमें यह सिख मिलती है की बड़ो का मन भी बच्चो जैसा होना चाहिए तभी हम जिस काम में हमारा मन लगेगा उसे सफलतापूर्वक कर पायेगे और अपनी मंजिल को पा सकेंगे तो दोस्तों अगर सफल होना है अपनी मंजिल को पाना है तो बच्चे बन जाओ !
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