अंकेक्षण का अर्थ
एक स्वतंत्र जाँच
संस्था
वितीय विवरणों / सूचनाओ
राय प्रकट करना
अर्थात किसी भी संस्था के वितीय विवरणों / वितीय सूचनाओ की स्वतंत्र जाँच करके उस पर राय व्यक्त करना अंकेक्षण कहलाता है।
लेखांकन अनिवार्यता और अंकेक्षण विलासिता के रूप में
लेखांकन अनिवार्यता के रूप में
किसी भी व्यवसाय के जीवित रहने के लिए उसकी कार्यक्षमता बढ़ाने तथा सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए लेखांकन अनिवार्य है इसे निम्न बिन्दुओ के माध्यम से समझा जा सकता है।
(१) व्यवसाय को जीवित रखने के लिए = किसी व्यवसाय के लाभ या हानि का सही सही ज्ञान लेखांकन के बिना पता नही लगाया जा सकता। अगर किसी संस्था में कई विभाग हो तो यह पता लगाने के लिए की कोनसा विभाग लाभ दे रहा है तथा कोनसा हानि दें रहा है इस लिए लेखांकन अनिवार्य हो जाता है।
(2) व्यवसाय की कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए= लेखांकन के माध्यम से व्यवसाय द्वारा की जाने वाली विभिन्न क्रियाओ की कार्यक्षमता का माप करके उसे बढ़ा सकता है !
(3) व्यवसाय की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए= बिना लेखांकन के व्यवसाय की प्रतिष्ठा नही बन पायेगी क्योकि आयकर , बिक्रीकर और बैंक ऐसे व्यवसाय पर विश्वास नही करेंगे !
अंकेक्षण एक विलासिता के रूप में
धन + शक्ति + समय + कार्यक्षमता = दुरूपयोग
अंकेक्षण का विलासिता न होना
(1) कर्मचारियों की कार्यक्षमता में वृद्धि = कर्मचारी अपना कार्य अधिक सावधानी व ईमानदारी के साथ करते है क्योकि उन्हें मालूम होता है कि उनके कार्य का अंकेक्षण किया जायेगा।
(2) प्रबंधको की कार्यक्षमता में वृद्धि = प्रबंधको को भी यह पता होता है कि उनके कार्य के सम्बन्ध में रिपोर्ट व्यवसाय के स्वामियों को दी जानी है इसलिए वह भी अपना कार्य पूरी क्षमता के साथ करते है।
(3) प्रक्रियाओ की कार्यक्षमता में वृद्धि = अंकेक्षण से व्यवसाय की प्रक्रियाओ की कमजोरियों को दूर करके उनकी कार्यक्षमता में वृद्धि की जा सकती है।
(4) प्रतिष्ठा की कार्यक्षमता में वृद्धि = अंकेक्षित खातों पर सभी जगह विश्वास किया जाता है इसलिए बैंकिंग कम्पनी , बीमा कम्पनी , सरकार , आयकर विभाग में व्यवसाय की प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है।
(5) प्लांट एव मशीन की कार्यक्षमता में वृद्धि = लागत लेखांकन से यह ज्ञात हो जाता है कि प्लांट एवं मशीन कब-कब और किन -किन कारणों से बेकार रहती है उन कारणों को दूर करके उनकी कार्यक्षमता बढ़ाई जा सकती है।
(6) तुलना द्वारा कार्यक्षमता में वृद्धि = पिछले वर्षो के अंकेक्षित खातों की तुलना करके उनकी कार्यक्षमता में वृद्धि की जा सकती है।
अशुद्धियों के प्रकार
(1) सैद्धांतिक अशुद्धियाँ = जैसे आयगत खर्चो को पूँजीगत खर्चो में लिखना।
(2) भूल की अशुद्धियाँ = सौदों का लेखा पुस्तको में करने से भूल जाना
(3) क्षतिपुरक अशुद्धियाँ = जब दो या दो से अधिक अशुद्धियाँ एक दूसरे के प्रभाव को तलपट पर प्रकट होने से छिपा लेती है।
(4) दोहराव की अशुद्धियाँ = एक ही सौदे की पुस्तको में एक से अधिक बार प्रविष्ठी कर दी जाये
(5) हिसाब की अशुद्धियाँ = जैसे पुस्तको की जोड़ गलत लगा देना या खातों का शेष आगे ले जाते समय गलती करना।
एक स्वतंत्र जाँच
संस्था
वितीय विवरणों / सूचनाओ
राय प्रकट करना
अर्थात किसी भी संस्था के वितीय विवरणों / वितीय सूचनाओ की स्वतंत्र जाँच करके उस पर राय व्यक्त करना अंकेक्षण कहलाता है।
लेखांकन अनिवार्यता और अंकेक्षण विलासिता के रूप में
लेखांकन अनिवार्यता के रूप में
किसी भी व्यवसाय के जीवित रहने के लिए उसकी कार्यक्षमता बढ़ाने तथा सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करने के लिए लेखांकन अनिवार्य है इसे निम्न बिन्दुओ के माध्यम से समझा जा सकता है।
(१) व्यवसाय को जीवित रखने के लिए = किसी व्यवसाय के लाभ या हानि का सही सही ज्ञान लेखांकन के बिना पता नही लगाया जा सकता। अगर किसी संस्था में कई विभाग हो तो यह पता लगाने के लिए की कोनसा विभाग लाभ दे रहा है तथा कोनसा हानि दें रहा है इस लिए लेखांकन अनिवार्य हो जाता है।
(2) व्यवसाय की कार्यक्षमता बढ़ाने के लिए= लेखांकन के माध्यम से व्यवसाय द्वारा की जाने वाली विभिन्न क्रियाओ की कार्यक्षमता का माप करके उसे बढ़ा सकता है !
(3) व्यवसाय की प्रतिष्ठा बढ़ाने के लिए= बिना लेखांकन के व्यवसाय की प्रतिष्ठा नही बन पायेगी क्योकि आयकर , बिक्रीकर और बैंक ऐसे व्यवसाय पर विश्वास नही करेंगे !
अंकेक्षण एक विलासिता के रूप में
धन + शक्ति + समय + कार्यक्षमता = दुरूपयोग
अंकेक्षण का विलासिता न होना
(1) कर्मचारियों की कार्यक्षमता में वृद्धि = कर्मचारी अपना कार्य अधिक सावधानी व ईमानदारी के साथ करते है क्योकि उन्हें मालूम होता है कि उनके कार्य का अंकेक्षण किया जायेगा।
(2) प्रबंधको की कार्यक्षमता में वृद्धि = प्रबंधको को भी यह पता होता है कि उनके कार्य के सम्बन्ध में रिपोर्ट व्यवसाय के स्वामियों को दी जानी है इसलिए वह भी अपना कार्य पूरी क्षमता के साथ करते है।
(3) प्रक्रियाओ की कार्यक्षमता में वृद्धि = अंकेक्षण से व्यवसाय की प्रक्रियाओ की कमजोरियों को दूर करके उनकी कार्यक्षमता में वृद्धि की जा सकती है।
(4) प्रतिष्ठा की कार्यक्षमता में वृद्धि = अंकेक्षित खातों पर सभी जगह विश्वास किया जाता है इसलिए बैंकिंग कम्पनी , बीमा कम्पनी , सरकार , आयकर विभाग में व्यवसाय की प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है।
(5) प्लांट एव मशीन की कार्यक्षमता में वृद्धि = लागत लेखांकन से यह ज्ञात हो जाता है कि प्लांट एवं मशीन कब-कब और किन -किन कारणों से बेकार रहती है उन कारणों को दूर करके उनकी कार्यक्षमता बढ़ाई जा सकती है।
(6) तुलना द्वारा कार्यक्षमता में वृद्धि = पिछले वर्षो के अंकेक्षित खातों की तुलना करके उनकी कार्यक्षमता में वृद्धि की जा सकती है।
अंकेक्षण के उद्देश्य
(1) अंतिम खातों की सचाई एवं शुद्धता की जाँच।
(2) अशुद्धियों का पता लगाना।
(3) कपट का पता लगाना।
(4) कपट एवं अशुद्धियों को रोकना।
(5) प्रबंधको को सलाह देना।
(6) कम्पनी की सही वितीय स्थिति का पता लगाना।
अशुद्धियाँ एवं कपट
अशुद्धियों के प्रकार
(1) सैद्धांतिक अशुद्धियाँ = जैसे आयगत खर्चो को पूँजीगत खर्चो में लिखना।
(2) भूल की अशुद्धियाँ = सौदों का लेखा पुस्तको में करने से भूल जाना
(3) क्षतिपुरक अशुद्धियाँ = जब दो या दो से अधिक अशुद्धियाँ एक दूसरे के प्रभाव को तलपट पर प्रकट होने से छिपा लेती है।
(4) दोहराव की अशुद्धियाँ = एक ही सौदे की पुस्तको में एक से अधिक बार प्रविष्ठी कर दी जाये
(5) हिसाब की अशुद्धियाँ = जैसे पुस्तको की जोड़ गलत लगा देना या खातों का शेष आगे ले जाते समय गलती करना।
कपट के प्रकार
रोकड़ का ---- माल का ---- श्रम का ---- सम्पति का --- सुविधाओ का --- हिसाब किताब का
कपट गबन गबन गबन गबन गबनअंकेक्षण को नियंत्रित करने वाले आधारभूत सिद्धांत
(1) सत्यनिष्ठा , वस्तुनिष्ठता तथा निष्पक्षता = अंकेक्षक को अपने पेशेवर कार्य के प्रति सत्यनिष्ठ, वस्तुनिष्ट तथा निष्पक्ष होना चाहिए।
(2) गोपनीयता = अंकेक्षक को अपने नियोक्ता की सूचनाये बिना अनुमति के अन्य तीसरे पक्ष के सामने प्रकट नही करनी चाहिए
(3) दक्षता = अंकेक्षक प्रशिक्षित , अनुभवी तथा दक्ष व्यक्ति होना चाहिए।
(4) दुसरो द्वारा निष्पादित कार्य = अंकेक्षक को अपने सहयोगियों द्वारा किये गए कार्य पर तब तक विश्वास करना चाहिए जब तक विश्वास न करने का कारण उनके पास न हो।
(5) प्रपत्रिकरण= अंकेक्षक को उन विषयो का प्रपत्रिकरण कर लेना चाहिए जो सबूत जुटाने में महत्वपूर्ण हो।
(6) नियोजन = अंकेक्षक को अपना कार्य नियोजित तरीके से करना चाहिए।
(7) अंकेक्षण = अंकेक्षक को अंकेक्षण करते समय विभिन्न प्रविधियों को लगाकर उचित तथा पर्याप्त अंकेक्षण जुटाने चाहिए।
(8) आंतरिक नियंत्रण = अंकेक्षण को लेखांकन के साथ - साथ आंतरिक नियंत्रण की भी अच्छी समझ होनी चाहिए ताकि वह संस्था के आंतरिक नियंत्रण का सही मूल्यांकन कर सके।
(9) अंकेक्षण निष्कर्ष व प्रतिवेदन = अंकेक्षक को अंकेक्षण सबूत से प्राप्त परिणामों का मूल्यांकन करके प्रतिवेदन तैयार करना चाहिए।
चालू अंकेक्षण
चालू अंकेक्षण से आशय उस अंकेक्षण से है जिसमे संस्था के खातो की जाँच लगातार वर्ष में अंकेक्षक या उसके सहयोगियों द्वारा होती है। चालू या निंरंतर अंकेक्षण का आशय वास्तव में उस अंकेक्षण से है जो वितीय वर्ष के प्रारम्भ होने से शुरू होता है और लगातार वर्ष भर होता रहता है या वितीय वर्ष में समयांतर ( जैसे साप्ताहिक , अर्धमासिक , मासिक या त्रैमासिक ) पर अंकेक्षक का स्टाफ अंकेक्षण करता रहता है।
चालू अंकेक्षण के लाभ
(1) विस्तृत एवं गहरी जाँच।
(2) अशुद्धियों एवं कपट के प्रकट होने की संभावना।
(3) अशुद्धियों एवं कपट का शीघ्र प्रकट हो जाना
(4) अंकेक्षक द्वारा अधिक उपुक्त सलाह।
(5) अंतिम खातों की शीघ्र तैयारी
(6) अंतरिम खाते तैयार होने में सहायता।
(7) लेखांकन में शीघ्र सुधार।
(8) भावी योजनाये शीघ्र बन जाती।
(9) कर्मचारियों पर अधिक नैतिक प्रभाव।
चालू अंकेक्षण से हानियाँ
(1) अधिक खर्चीला।
(2) कार्य में बाधा।
(3) कार्य का तांता टूटने का भय।
(4) कार्य में स्थिलता।
(5) कर्मचारियों पर नैतिक प्रभाव में कमी।
(6) जाँच किये हुए हिसाब में परिवर्तन की संभावना।
सामयिक अंकेक्षण / अंतिम अंकेक्षण / वार्षिक अंकेक्षण
जब कोई वितीय काल समाप्त हो जाता है और उसके अंतिम खाते तैयार हो जाते है तो उस वर्ष के हिसाब - किताब के जाँच का कार्य आरम्भ किया जाता है। जाँच कार्य तब तक चलता रहता है जब तक कि समाप्त
नही कर लिया जाये।
यह अंकेक्षण वितीय वर्ष की समाप्ति पर प्रारम्भ किया जाता है और एक बार में ही पुरे कार्य को पूर्ण कर लिया जाता है। इसलिए इसे पूर्णकृत अंकेक्षण भी कहते है। यह अंकेक्षण अंतिम खाते तैयार होने के बाद किया जाता है इसलिए इसको अंतिम अंकेक्षण भी कहते है। इस अंकेक्षण का एक नाम चिठा अंकेक्षण भी है , क्योंकि इसे चिठा बन जाने के पश्चात प्रारम्भ जाता है।
सामियक अंकेक्षण के लाभ
(1) अंक परिवर्तन का भी नही।
(2) कार्य में बाधा नही।
(3) मितव्ययी ( कम खर्चीला )
(4) सुविधाजनक
(5) कम समय में
(6) कार्य का ताँता है
सामियक अंकेक्षण के हानियाँ
(1) विस्तृत व् गहरी जाँच का आभाव
(2) अशुद्धियों का देर से ज्ञान
(3) कपट का देर से प्रकट होना
(4) नैतिक प्रभाव में कमी
(5) अंतिम खाते तैयार होने में विलम्ब
(6) देर से सलाह मिलना
औचित्य अंकेक्षण
प्रबंधको के द्वारा समय -समय पर लिए गए निर्णयों की जाँच करना औचित्य अंकेक्षण कहलाता है जाँच तीन आधारो पर की जाती है -
(1) बुद्धिमानी
(2) निष्ठां
(3) मितव्यता
निष्पति अंकेक्षण
इस अंकेक्षण के अंतर्गत यह जाँच की जाती है कि कार्य का सम्पादन व्यवसाय के निर्धारित उद्देश्यों के अनुरूप है अथवा नही।
अंकेक्षण की महत्वपूर्ण अवधारणाएँ
(1) अंकेक्षक की स्वतंत्रता की अवधारणा = किसी भी पेशे में स्वतंत्रता एक अनिवार्यता होती है बिना स्वतंत्रता के अंकेक्षक निष्पक्ष रूप से अंकेक्षण कार्य नही पायेगा। अंकेक्षक को कम्पनी के प्रबंधको , कर्मचारियों से आवश्यक अंकेक्षण सामग्री प्राप्त करने की स्वतंत्रता होती है अंकेक्षक की स्वतंत्रता को बनाये रखने के लिए कम्पनी अधिनियम ,2013 की धारा में निम्नलिखित व्यक्तियों को अंकेक्षण करने के लिए अयोग्य बताया गया है
(१) कम्पनी का अधिकारी अथवा कर्मचारी
(२)
(३)
(४)
(2) सारभूतता की अवधारणा - यह बहुत ही आवश्यक व उचित है की अंकेक्षक ऐसी मदो के बारे में निर्णय करे कि वे मदे एक अंकेक्षक के लिए सारभूत है या तुछ। एक अंकेक्षक को सारभूत मदो के उचित व विश्वसनीय आंकड़े एकत्र लेने चाहिए। सारभूत मदो को वित्तीय विवरणों उचित तरीके के प्रदर्शित करना चाहिए।
कम्पनी अधिनियम 1956 के अनुसार सारभूत मदे वे खर्चे है जो
कुल खर्चे का 1% हो
या
5000 रूपये
दोनो में से जो अधिक हो = उसे अलग से लाभ- हानि खाते में दिखाया जायेगा
अंकेक्षक को ही मूल्यांकन करना होता है कि मदे सारभूत है या नही। अंकेक्षक को या भी निश्चित करना पड़ता है कि जो मदे सारभूत प्रकृति की है उनको अलग से प्रकट किया गया है या नही।
कम्पनी अधिनियम 1956 के अनुसार सारभूत मदे वे खर्चे है जो
कुल खर्चे का 1% हो
या
5000 रूपये
दोनो में से जो अधिक हो = उसे अलग से लाभ- हानि खाते में दिखाया जायेगा
अंकेक्षक को ही मूल्यांकन करना होता है कि मदे सारभूत है या नही। अंकेक्षक को या भी निश्चित करना पड़ता है कि जो मदे सारभूत प्रकृति की है उनको अलग से प्रकट किया गया है या नही।
(3) सही एव उचित की अवधारणा
सही व उचित शब्द स्पष्ट करते है कि संस्था के लेखांकन विवरणों में दिखाए गए परिणाम संस्था की सही आर्थिक स्थिति को बताते है।
सही व उचित की सुनिश्चितता करने के लिए अंकेक्षक को देखना चाहिए कि :-
(१)लेखांकन सिद्धांतो के अनुसार सम्पतियों का अधिमूल्यन व अवमूल्यन किया गया है या नही।
(२)किसी भी सारभूत सम्पति को नही छोड़ा गया हो।
(३)किसी भी सारभूत दायित्व को नही छोड़ा गया हो।
(४)आर्थिक चिठ्ठा कम्पनी अधिनियम ,2013 की अनुसूची -(३) के अनुसार बनाया गया है।
(५) लेखांकन नीतियों का पालन किया गया है।
(4) लेखांकन नीतियों के प्रकटीकरण की अवधारणा
महत्वपूर्ण लेखांकन नीतियों का प्रकटन बहुत अनिवार्य व महत्वपूर्ण है। यदि लेखांकन नीतियों में कोई भी परिवर्तन किया जाता है जिसका सारभूत प्रभाव होता है तो उसे प्रकट किया जाना चाहिए
कुछ महत्वपूर्ण प्रकटीकरण निम्नलिखित है :-
(१)हास (Dep.) की विधियों में परिवर्तन।
(२)विदेशी मुद्रा की मदों के विनिमय के लेखांकन में परिवर्तन।
(३)स्टॉक मूल्यांकन की विधि में परिवर्तन।
(४)विनियोग के मूल्यांकन में परिवर्तन।
(५)ख्याति का उपचार
अंकेक्षण से लाभ
(1) अनुशासन कायम रखना
(2) अनियमिताए ,चोरी व गबन प्रकट होना
(3) कर्मचारियों एवं प्रबंधको को सावधान करना
(4) व्यापार की सही स्थिति बनाना
(5) सच्चाई व ईमानदारी का प्रमाण पत्र
(6) कर्मचारीयो की योग्यता का प्रमाण मिलना
(7) बहुमूल्य सलाह मिलना
(8) अंकेक्षित हिसाब-किताब का अधिक विश्वस्त होना
(9) विनियोजको की रखवाली करना
अतिरिक्त प्रश्न
प्रश्न 1. पुस्तपालन व लेखांकन में अंतर बताये ?
प्रश्न 2. पुस्तपालन व अंकेक्षण में अंतर बताये ?