कृत्रिम पैर सहारे हिमालय सबसे ऊँची चोटी "मांउंट एवरेस्ट " फतह करने वाली अरुणिमा सिन्हा कहती है मेरा कटा पाव मेरी कमजोरी था। उसे मेने अपनी ताकत बनाया।
अरुणिमा सिन्हा उतर प्रदेश के अम्बेडकरनगर की रहने वाली है। अरुणिमा सिन्हा मूलतः बिहार की रहने वाली है पिता जी फ़ौज में थे जिस कारण परिवार सुल्तानपुर आ गया। चार वर्ष की उम्र में पिता का स्वर्गवाश हो गया। माँ के साथ परिवार अम्बेडकरनगर आ गया। वहा माँ को स्वास्थ्य विभाग में नोकरी मिल गयी पर परिवार चलाना अब भी मुश्किल हो रहा था। फिर भी अरुणिमा सिन्हा ने इंटर के बाद एलएलबी की पढ़ाई की। खेलो में रुझान होने कारण राष्ट्रीय स्तर पर वॉलीवाल व फुटबाल पुरस्कार जीते , लेकिन कुछ खाश हाथ न लग सका। पर अरुणिमा का एक सपना था कुछ अलग करने का।
वह काली रात अरुणिमा सारी उम्र नही भूल सकती। वह दिल्ली जा रही थी। रात के लगभग दो बजे थे। चारो और सन्नाटा था कब उनकी आँख लग गई पता ही नही चला। तभी बरेली के पास कुछ बदमाश गाड़ी पर चढे। अरुणिमा को अकेला पाकर वे अरुणिमा की चेन छीनने लगे। अरुणिमा ने भी डटकर सामना किया लुटेरे चेन छीनने में नाकाम हुए तो लुटेरो ने अरुणिमा को चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया। पास के ट्रेक पर आ रही दूसरी ट्रेन उनके बाए पैर के ऊपर से निकल गई जिससे उनका पूरा शरीर खून से लथपथ हो गया कई घंटो तक दोनों ट्रेक पर कई ट्रेने दौड़ती रही सुबह होने पर आसपास के लोगो ने बेहोसी की हालत में अरुणिमा को पास के हास्पिटल पहुचाया। वे अपना बायां पैर खो चुकी थी और उनके दायें पैर में लोहे की छड़े डाली गई। उनका चार महीने तक दिल्ली के आल इण्डिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में इलाज चला।
वह काली रात अरुणिमा सारी उम्र नही भूल सकती। वह दिल्ली जा रही थी। रात के लगभग दो बजे थे। चारो और सन्नाटा था कब उनकी आँख लग गई पता ही नही चला। तभी बरेली के पास कुछ बदमाश गाड़ी पर चढे। अरुणिमा को अकेला पाकर वे अरुणिमा की चेन छीनने लगे। अरुणिमा ने भी डटकर सामना किया लुटेरे चेन छीनने में नाकाम हुए तो लुटेरो ने अरुणिमा को चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया। पास के ट्रेक पर आ रही दूसरी ट्रेन उनके बाए पैर के ऊपर से निकल गई जिससे उनका पूरा शरीर खून से लथपथ हो गया कई घंटो तक दोनों ट्रेक पर कई ट्रेने दौड़ती रही सुबह होने पर आसपास के लोगो ने बेहोसी की हालत में अरुणिमा को पास के हास्पिटल पहुचाया। वे अपना बायां पैर खो चुकी थी और उनके दायें पैर में लोहे की छड़े डाली गई। उनका चार महीने तक दिल्ली के आल इण्डिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में इलाज चला।
अगस्त 2011 के अंतिम हफ्ते में जब अरुणिमा को एम्स से छुट्टी मिली तो वे
अपने साथ हुए हादसे को भूलकर एक बेहद कठिन और असंभव-से प्रतीत होने वाले
लक्ष्य को साथ लेकर अस्पताल से बाहर निकलीं. यह लक्ष्य था विश्व की सबसे
ऊंची चोटी एवरेस्ट को फतह करने का. अब तक कोई भी विकलांग ऐसा नहीं कर पाया
था. कटा हुआ बायां पैर, दाएं पैर की हड्डियों में पड़ी लोहे की छड़ और शरीर
पर जख्मों के निशान के साथ एम्स से बाहर आते ही अरुणिमा सीधे अपने घर न आकर
एवरेस्ट पर चढऩे वाली पहली भारतीय महिला पर्वतारोही बछेंद्री पॉल से
मिलने जमशेदपुर जा पहुंचीं.
प्रशिक्षण पूरा होने के बाद उन्होंने एवरेस्ट की चढ़ाई शुरू की| 52 दिनों की कठिन चढ़ाई के बाद आखिरकार उन्होंने 21 मई 2013 को उन्होंने एवेरेस्ट फतह कर ली| एवेरस्ट फतह करने के साथ ही वे विश्व की पहली विकलांग महिला पर्वतारोही बन गई|