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Friday 5 August 2016

हौसलो की उड़ान अरुणिमा सिन्हा (Arunima sinha biography in hindi)

                   कृत्रिम पैर  सहारे हिमालय  सबसे ऊँची चोटी "मांउंट एवरेस्ट " फतह करने वाली अरुणिमा सिन्हा कहती है मेरा कटा पाव मेरी कमजोरी था। उसे मेने अपनी ताकत बनाया।

                    अरुणिमा सिन्हा उतर प्रदेश के अम्बेडकरनगर  की रहने वाली है। अरुणिमा सिन्हा मूलतः बिहार की रहने वाली है पिता जी फ़ौज में थे जिस कारण  परिवार सुल्तानपुर आ गया।  चार वर्ष की उम्र में पिता का स्वर्गवाश हो गया। माँ के साथ परिवार अम्बेडकरनगर आ गया। वहा माँ को स्वास्थ्य विभाग में नोकरी मिल गयी पर परिवार चलाना अब भी मुश्किल हो रहा था।  फिर भी अरुणिमा सिन्हा ने इंटर के बाद एलएलबी की पढ़ाई की। खेलो में रुझान होने  कारण राष्ट्रीय स्तर पर वॉलीवाल व फुटबाल पुरस्कार जीते , लेकिन कुछ खाश हाथ  न लग सका। पर अरुणिमा का एक सपना था कुछ अलग करने का।


                 वह काली रात अरुणिमा सारी उम्र नही भूल सकती। वह दिल्ली जा रही थी। रात के लगभग दो बजे थे। चारो और सन्नाटा था कब उनकी आँख लग गई पता ही नही चला।  तभी बरेली के पास कुछ बदमाश गाड़ी पर चढे। अरुणिमा को अकेला पाकर वे अरुणिमा की चेन छीनने लगे।  अरुणिमा ने भी डटकर सामना किया लुटेरे चेन छीनने में नाकाम हुए तो लुटेरो ने अरुणिमा को चलती ट्रेन से नीचे फेंक दिया। पास के ट्रेक पर आ रही दूसरी ट्रेन उनके बाए पैर के ऊपर से निकल गई जिससे उनका पूरा शरीर खून से लथपथ हो गया कई घंटो तक दोनों ट्रेक पर कई ट्रेने दौड़ती रही सुबह होने पर आसपास के लोगो ने बेहोसी की हालत में अरुणिमा को पास के हास्पिटल पहुचाया।  वे अपना बायां पैर खो चुकी थी और उनके दायें पैर में लोहे की छड़े डाली गई। उनका चार महीने तक दिल्ली के आल इण्डिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज में इलाज चला। 

        अगस्त 2011 के अंतिम हफ्ते में जब अरुणिमा को एम्स से छुट्टी मिली तो वे अपने साथ हुए हादसे को भूलकर एक बेहद कठिन और असंभव-से प्रतीत होने वाले लक्ष्य को साथ लेकर अस्पताल से बाहर निकलीं. यह लक्ष्य था विश्व की सबसे ऊंची चोटी एवरेस्ट को फतह करने का. अब तक कोई भी विकलांग ऐसा नहीं कर पाया था. कटा हुआ बायां पैर, दाएं पैर की हड्डियों में पड़ी लोहे की छड़ और शरीर पर जख्मों के निशान के साथ एम्स से बाहर आते ही अरुणिमा सीधे अपने घर न आकर एवरेस्ट पर चढऩे वाली पहली भारतीय महिला पर्वतारोही बछेंद्री पॉल से मिलने जमशेदपुर जा पहुंचीं.

        प्रशिक्षण पूरा होने के बाद उन्होंने एवरेस्ट की चढ़ाई शुरू की| 52 दिनों की कठिन चढ़ाई के बाद आखिरकार उन्होंने 21 मई 2013 को उन्होंने एवेरेस्ट फतह कर ली| एवेरस्ट फतह करने के साथ ही वे विश्व की पहली विकलांग महिला पर्वतारोही बन गई|

Tuesday 2 August 2016

15 साल की उम्र में छोड़ा घर , झुग्गी में रहे , अख़बार बेचा अब 10 हजार करोड़ रूपये की एप कंपनी के है मालिक

अम्बरीश पैदा कोलकाता में हुए। बचपन धनबाद में बिता। अम्बरीश का मन पढ़ाई में कम लगता था ,स्कूल में अक्सर फेल हो जाते थे । पिता चाहते थे की बेटा इंजीनियर बने ,लेकिन अम्बरीश को कंप्यूटर पंसद था।  आखिर घर छोड़ने का फैसला कर लिया। पिता के नाम खत लिखा बताया की घर छोड़कर जा रहा हु तब उनकी उम्र 15 वर्ष थी। पिता को बताया था की मुम्बई जा रहा हु पर हीरो बनने नही। परन्तु रास्ते में इरादा बदल गया और मुम्बई की बजाय दिल्ली चले गए। वहा एक झुग्गी में उन्हें ढिकाना मिला। कमरे में 6 लोग रहते थे।  खर्च जुटाने के लिए अम्बरीश अख़बार मैगजीन बेचते थे और रेस्तरां में काम करते थे।  एक दिन अख़बार में विज्ञापन देखा।  उसमे बिजनेस आइडीया मांग गया था। पांच लाख का इनाम था। अम्बरीश ने महिलाओ को मुफ्त में इंटरेनट देने का आइडिया दिया और यह इनाम के लिए चुन लिए गए इसी पैसे से अम्बरीष ने "वुमेन इन्फोलाइन" शुरू किया।  अब 37 वर्ष के अम्बरीश कहते है , 'तब में अच्छा लीडर नही था कंपनी में मुनाफा नही हो रहा था। 2000 में कंपनी छोड़ दी।  वुमन इन्फोलाइन में काम करते जो पैसे जुटाए थे।  उससे इंग्लैंड जाने का फैसला किया।  वहा टेक्नोलॉजी कंपनी शुरू करना चाहते थे लेकिन सफलता नही मिली।  जो पैसे थे , सब खर्च हो गए।

                   फिर एक बीमा कंपनी ज्वाइन की।  इसी दौरान शराब की लत लग गई। एक दिन लंदन के एक पब में शराब पीते - पीते किस्मत ने करवट ली।  दोस्त उमर तैयब के साथ पब में बैठे थे।  आखिरी पैग के लिए अम्बरीश ने काउंटर पर 15 डॉलर रखे और मजाक में कहा , कितना अच्छा होता की नोट से महारानी एलिजाबेथ बाहर आ जाती।  यही मजाक बिजनेस आइडिया बन गया। उमर ने अम्बरीश की फोटो ली और उसे महारानी की फोटो पर सुपरइम्पोज कर दिया। फिर दोनों ने मिलकर इस एप को डेवलप करने की सोची। और इस तरह  "Blippar"   कंपनी का जन्म हुआ। 

                  अम्बरीश ने 2011 में "Blippar" लांच की थी। यह पोकमैन गो की तरह मोबाइल फोन के लिए 'ऑग्मेंटेड रियलिटी' एप्स बनाती है।   "Blippar" एप्स भी काफी लोकप्रिय हो रहे है।  इस कंपनी का 12 जगहों पर ऑफिस है करीब 300 स्टाफ है। कंपनी 650 करोड़ रूपये का निवेश जुटा चुकी है इसने जगुआर ,यूनिलीवर , नेस्ले जैसी कंपनीयो के साथ टाई-अप किया है। 

Wednesday 29 June 2016

विराट कोहली की दीवानगी (Virat Kholi Diwangi In Hindi)

 भारतीय क्रिकेट टीम के सुपरस्टार बेस्टमैन विराट कोहली से पूरी दुनिया परिचित है उनका परिचय देने की जरूरत नहीं है आज वे भारतीय टीम के स्टार बल्लेबाज है।  आज कोहली जिनते मशहूर है आज उनके प्रति लोगो का जितना प्यार है और जितना शानदार तरिके से वे खेलते है इन सबके पीछे सबसे बड़ा हाथ उनकी क्रिकेट के प्रति दीवानगी का है।  उनकी कई वर्षो की मेहनत और लगन का नतीजा आज उनके सामने निकलकर आया है। और आज वे सुपरस्टार बल्लेबाज है।  क्रिकेट के प्रति दीवानगी तथा समर्पण विराट का कितना है यह अंदाजा आप इस घटना से लगा सकते हो। 
                               कोहली कैरियर की शुरुआत में एक रणजी ट्रॉफी मैच दिल्ली में कर्नाटक के खिलाफ खेल रहे थे।  मैच के दौरान उन्हें खबर मिली की उनके पिता जी की मृत्यु हो चुकी है फिर भी उनका क्रिकेट के प्रति इतना समर्पण भाव था की वे अपनी  बल्लेबाजी  पूरी करने के बाद ही उस मेदान से बाहर गए।  कोहली से एक जबरदस्त सीख हमे मिलती है कि हम जीवन में जो कुछ हासिल करना चाहते है जो कुछ बनना चाहते है तो उसके प्रति हमारा पूर्ण समर्पण होना चाहिए तभी हम भी विराट कोहली की तरह अपनी मंजिल तक पहुंच सकेंगे और अपने परिवार के सपनो को पूरा कर सकेंगे। 
                                                 थैंक्स दोस्तों अगर आप को मेरी यह पोस्ट अच्छी लगी हो तो इसे SHARE जरूर करें और सलाह  देने के लिए COMMENT भी जरूर करें 

Friday 7 August 2015

मेटी मेकोनेंन एसएमएस सर्विस के जनक

                 26 अप्रैल 1952 को जन्मे मेटी को मोबाइल नेटवर्क के जरिये एसएमएस (शॉर्ट मैसेज सर्विस ) शुरू करने का विचार 1984 में पहली बार आया ! उन्होंने यह कॉन्सेप्ट लंच के दौरान पिज्जा खाते -खाते टेलीकॉम एक्स्पर्ट के सामने रखा ! हालाँकि पहला टेक्स्ट मैसेज 3 दिसम्बर 1992 को भेजा गया था ! वे एसएमएस का विकास एक सयुक्त प्रयास मानते थे ! इस सेवा को लोकप्रिय बनाने में वे नोकिआ का योगदान मानते थे क्योंकि एसएमएस लिखने की सुविधा वाला पहला फ़ोन (नोकिया 2010 ) 1994 में इसी कंपनी ने पेश किया था ! इनका 30 जून 2015 को 63 वर्ष की उम्र में निधन हो गया ! वे 1989 में दूरसंचार फिनलैंड मोबाइल संचार इकाई के अध्यक्ष रहे !

Thursday 6 August 2015

गरीब बच्चो के लिए छोड़ दी 6.37 करोड़ की नौकरी

       टाइटेनिक , ब्रेवहार्ट , एक्समैन ,इंडिपेंड्स डे और ऐसी ही सेकड़ो ब्लॉकबस्टर फिल्मो की प्रोडक्शन कम्पनी फॉक्स इंटरनेशनल के एग्जक्यूटिव रह चुके और सोनी पिक्चर के लिए काम कर चुके स्कॉट नेसन ने साल 2003 में अपने एशिया दौरे के दौरान कंबोडिया में बच्चों की गरीबी देख कुछ इस तरह विचलित हुए की उन्होंने लौटने के बाद अपनी एक मिलियन डॉलर लगभग 6 करोड़ 37 लाख रुपए सालाना की नौकरी छोड़ दी ! वह कंबोडिया में जाकर बस गए ! वहा गरीब बच्चो को भोजन, घर और शिक्षा मुहैया कराने के लिए कम्बोडियन चिल्ड्रन फण्ड बनाया !

कूड़े में पड़े तीन बच्चो को देख बदली सोच 

     53 वर्षीय स्कॉट को एशिया दौर के दौरान युद्ध की मार झेल रहे कंबोडिया में एक 86 वर्षीय महिला एक ऐसी जगह ले गई जहाँ तीन छोटे बच्चे कूड़े में पड़े हुए थे और टाइफाइड से बीमार थे ! वही दूसरे बच्चे कूड़े से खाना उठाकर खा रहे थे ! तभी अचानक उनके फ़ोन की घंटी बजी जिस पर दूसरी ओऱ उनकी फिल्म का एक बड़ा अभिनेता प्राइवेट जेट प्लेन में पीने और खाने की चीजो न होने की शिकायत कर रहा था ! इसके बाद ही उनकी जिंदगी बदल गई और उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ इन गरीब बच्चो की मदद करने की ठान ली !

     स्कॉट इसे अपनी जिंदगी का सबसे अच्छा फैसला मानते है ! उनका कहना है कि इन बच्चो की जिंदगी में बदलाव लाना मेरी जिंदगी के सबसे अच्छे कामो में से एक है ! उनका संगठन फ़िलहाल 1500 बच्चो को कपड़े , भोजन, शिक्षा और रहने की सुविधा दे रहा है, उनके स्वास्थ्य के लिए क्लीनिक और कम्युनिटी सेंटर भी खोला है !

ऐसे महान स्कॉट को मेरा सलाम !  

खुद में बदलाव लाने का तरीका

दोस्तों आप ने अपनी लाइफ में यह बात कई बार सुनी होगी की पहले खुद सुधर जा फिर दुसरो को सुधारना ! परन्तु आप को यह जानकर ख़ुशी होगी की जब अपन  किसी भी व्यक्ति को कुछ उपदेश देते है या उसे कुछ अच्छी सलाह देते है या फिर उसे गलत रास्ते पर चलने से मना करते है और उसे कहते है की मेरे भाई ऐसा मत कर , ऐसा कर, यह सही है , वो गलत है !बहुत कुछ, हर इन्शान अपनी लाइफ में हर दिन किसी न किसी को उपदेश देता रहता है ! परन्तु अगर किसी अन्य व्यक्ति को अपने में कुछ कमी मिल जाये तो वह सीधा यही कहेगा की पहले खुद तो सुधर जा !
    
         दोस्तों जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को कुछ उपदेश देता है और भले ही वह खुद उनका पालन नही करता है तो उसे टोको  मत क्योकि वह व्यक्ति जब किसी को उपदेश दे रहा होता है  तो वह सामने वाले व्यक्ति को समझाने को पूरा प्रयास करता है ऐसा करने से एक बहुत बड़ा फायेदा उपदेश देने वाले को मिलता है  वह यह की सामने वाले व्यक्ति उस उपदेश को सुनकर भले ही थोड़ी देर में भूल जाये परन्तु जो उपदेस दे रहा होता है वह व्यक्ति उन बातो को कभी नही भूलता और वह अपने जीवन में उन उपदेशो पर अमल करता है !

     इस बात को हम एक लाइफ के वास्तविक अनुभव से समझ सकते है !  मेरी रिश्तेदारी में दो व्यक्ति थे एक का नाम था अजय और दूसरे का नाम थे विजय ! दोनों की उम्र लगभग 40 वर्ष थी !  दोनों शराब बहुत पीते थे ! दोनों के परिवार इस बात से बहुत दुखी थे ! पहले तो दोनों रोज रात को शराब पीते थे परन्तु कुछ दिनों से विजय दिन को भी शराब पिने लगा और इस बात से विजय का परिवार  बहुत दुखी था ! अजय और विजय दोनों एक दूसरे के रिश्तेदार थे इसलिए एक दूसरे की इज्जत करते थे ! 

     एक दिन विजय का परिवार अजय के पास गया और अजय को कहा की आप के मित्र विजय सुबह से रात हर समय शराब पीते रहते है और इस बात से हम सब बहुत परेशान है कृपया करके आप विजय को समझाए की वो शराब न पिये परन्तु अजय तो खुद शराब पिता था फिर भी उसने विजय को उसके घर जाकर समझाया खूब समझाया की शराब पीना गलत है अपने परिवार को परेशान मत कर ! अजय के समझाने से विजय तो थोड़ा बहुत समझ पाया ! परन्तु ऐसा करने के बाद अजय की लाइफ में परिवर्तन आने लग गया उसने शराब पीना पहले तो कम कर दिया और फिर बंद कर दिया !

     इसलिए दोस्तों जब अपन किसी व्यक्ति को अच्छी शिक्षा देते है तो सामने वाला समझें या न समझे अपन खुद समझ जाते है और अपने में सुधार होना शुरू हो जाता है ! इसलिए दोस्तों जब किसी को अच्छी शिक्षा देनी हो तो दीजिये क्योकि सामने वाला समझे या न समझें खुद को अक्ल जरूर आ जाती है !

Thanks