एक कार्यक्रम में सद्गुरु से एक व्यक्ति ने प्रश्न किया
प्रश्न:- गुरूजी सेक्स हमारे समाज में इतना निंदनीय क्यों माना जाता है ?
गुरु जी ने उतर दिया :- सेक्स किसी प्रकार से निंदनीय नहीं यह तो जीवन का हिस्सा है परन्तु इसको एक सीमा में बाँधने के लिए अलग अलग उपाय खोजे गए। प्रत्येक कार्य एक सीमा (limit) में होना चाहिए अति हर कार्य की बुरी होती है उसी प्रकार सेक्स की भी एक सीमा बांधना जरूरी था क्योकि सेक्स करने की इच्छा अत्यधिक प्रबल होती है। अगर समाज सेक्स को निंदनीय नहीं मानता तो समाज का , मानव जाती का ,तकनीकी का , विज्ञान आदि का विकास असम्भव होता। क्योकि मानव भोग विलास की सीमाएं पार कर जाता और अपने अंदर उत्पन होने वाली सर्व शक्तिशाली ऊर्जा को व्यर्थ में बहाता रहता और मानव जाती पशुओं और जानवरों की तरह होती। इसलिए समाज ने सेक्स को निंदनीय कार्य माना है ताकि मानव विकास की और अग्रसर हो तथा अपनी शक्ति का दुरूपयोग न करें ,मानव हर समय भोग विलाश में न डूबा रहे। इंसान अपनी मर्यादा में रहे और सेक्स को एक समय के बाद समाज की स्वीकृति से मर्यादा में रहकर लिमिट में करें ताकि उस व्यक्ति के स्वय के विकास के साथ साथ समाज का भी विकास हो सके।
प्रश्न:- गुरूजी सेक्स हमारे समाज में इतना निंदनीय क्यों माना जाता है ?
गुरु जी ने उतर दिया :- सेक्स किसी प्रकार से निंदनीय नहीं यह तो जीवन का हिस्सा है परन्तु इसको एक सीमा में बाँधने के लिए अलग अलग उपाय खोजे गए। प्रत्येक कार्य एक सीमा (limit) में होना चाहिए अति हर कार्य की बुरी होती है उसी प्रकार सेक्स की भी एक सीमा बांधना जरूरी था क्योकि सेक्स करने की इच्छा अत्यधिक प्रबल होती है। अगर समाज सेक्स को निंदनीय नहीं मानता तो समाज का , मानव जाती का ,तकनीकी का , विज्ञान आदि का विकास असम्भव होता। क्योकि मानव भोग विलास की सीमाएं पार कर जाता और अपने अंदर उत्पन होने वाली सर्व शक्तिशाली ऊर्जा को व्यर्थ में बहाता रहता और मानव जाती पशुओं और जानवरों की तरह होती। इसलिए समाज ने सेक्स को निंदनीय कार्य माना है ताकि मानव विकास की और अग्रसर हो तथा अपनी शक्ति का दुरूपयोग न करें ,मानव हर समय भोग विलाश में न डूबा रहे। इंसान अपनी मर्यादा में रहे और सेक्स को एक समय के बाद समाज की स्वीकृति से मर्यादा में रहकर लिमिट में करें ताकि उस व्यक्ति के स्वय के विकास के साथ साथ समाज का भी विकास हो सके।