संतोष वह महागुण है , जिसकी साधना से व्यक्ति शिखर तक पहुचता है ! इस पूँजी के आगे धन भी धूल के समान लगता है !
दोस्तों संतोष बहुत आवश्यक है ! हम मनुष्य प्रजाति में संतोष की कमी है ! हम किसी चीज को पाकर संतुष्ट नही होते है ! अगर एक चीज मिल जाती है ! तो दूसरी चीज की तरफ ध्यान चला जायेगा और उसे प्राप्त करने में लग जाते है ! इसी वजह से कुछ चीजो को प्राप्त करने के चककर में हम अपना और हमारी अाने वाली पीढ़ी का नुकसान करने में लगे हुए ! अगर ऐसे ही चलता रहा तो हमारी आने वाले पीढ़ी के लिए बहुत सारे संकट हम पैदा करके रख देंगे ! संतोष आभाव के कारण ही मानव प्रकृति का अंधाधुन दोहन कर रहा है और यही कारण है कि प्रकृति मानव को भूकप , बाढ़ , तूफान आदि के माध्यम से दंडित भी कर रही है !
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