Monday 6 July 2015

सुविचार :-


 सीढ़िया उनके लिए बनी है,जिन्हे सिर्फ छत पर जाना है ! आसमाँ पर हो जिनकी नजर, उन्हें तो रास्ता खुद बनाना है !

सुविचार :-

   लोग शायद ही कभी सफल होते है जब तक की जो वो कर रहे है  उसमे आनदं न ले ! 

Saturday 4 July 2015

सुविचार :-

               अच्छे से अच्छे इंसान में भी बुराई का कुछ अंश होता है !
               और बुरे से बुरे इंसान में भी कुछ अच्छाई होती है !

Friday 3 July 2015

सफलता से अधिक विफलता सिखाती है !

 

                   विफलता का मतलब हार कभी नही होता , यदि इंसान इस बात को ठीक से समझ ले , तो जिंदगी में आने वाली छोटी छोटी परेशानियां उसका कुछ भी नही बिगाड़ सकती , बल्कि हर बार इंसान और मजबूत होकर आगे बढ़ता है ! 
                   अपने अंदर हमेशा कुछ न कुछ Improve करने के लिए तैयार रहना चाहिए, अक्सर कुछ नया करने का मौका प्रदान करती है ! जी हा, यह पूरी तरह सच है  कि लोग जितना अपनी सफलता से नही सीखते , उससे ज्यादा उनको अपनी विफलता से सिखने को मिलता है ! आप कोई काम करते है और उसमे विफलता मिलती है , तो इससे आपकी Fiting खत्म नही होती, बल्कि यह आपको दोबारा ऐसी स्थति आने से पहले ही तैयार होने का अवसर प्रदान करती है ! आपको सोचना और समस्या का हल निकालना सिखाती है !

संतोष

            संतोष वह महागुण है , जिसकी साधना से व्यक्ति शिखर तक पहुचता है ! इस पूँजी के आगे धन भी धूल के समान लगता है !
   
            दोस्तों संतोष बहुत आवश्यक है ! हम मनुष्य प्रजाति में संतोष की कमी है ! हम किसी चीज को पाकर संतुष्ट नही होते है ! अगर एक चीज मिल जाती है ! तो दूसरी चीज की तरफ ध्यान चला जायेगा और उसे प्राप्त करने में लग जाते है ! इसी वजह से कुछ चीजो को प्राप्त करने के चककर में हम अपना और हमारी अाने वाली पीढ़ी का नुकसान करने में लगे हुए ! अगर ऐसे ही चलता रहा तो हमारी आने वाले पीढ़ी के लिए बहुत सारे संकट हम पैदा करके रख देंगे ! संतोष आभाव के कारण ही मानव प्रकृति का अंधाधुन दोहन कर रहा है और यही कारण है  कि प्रकृति मानव को भूकप , बाढ़ , तूफान आदि के माध्यम से दंडित भी कर रही है ! 

Thursday 2 July 2015

ईश्वर

                        




  भगवान महावीर से पूछा गया कि ईश्वर क्या है ?
  उन्होंने कहा कि उसे बताने के लिए शब्द नही है !सारे शब्द वहा से टकराकर लौट आते है ! तर्क वहां ठहरता नहीं, बुद्धि उसे ग्रहण नही कर पाती ! वह न गंध है , न रूप , न रस, न शब्द और न स्पर्श ! ग्रंथो की भाषा में वह नेति-नेति यानि ऐसा , वैसा भी नही !कैसा है, उसे बताया नहीं  जा सकता ! आत्मा-परमात्मा को शब्दों के माध्यम से बताने के प्रयास होते रहे है !

अभिलाषा

1. अभिलाषाओं से उपर  उठ जाओ  तो अभिलाषाएं पूरी हो जाएगी , परन्तु यदि उसे मांगोगे तो उसकी पूर्ति तुमसे और दूर चली जाएगी ! इसलिए अपनी अभिलाषाओं पर अंकुश लगाना सीखो !
                                                                                                                           रामतीर्थ 
2. अभिलाषा घोडा बन सकती तो प्रत्येक मनुष्य घुड़सवार हो जाता !
                                                                                                                           शेक्सपीयर 
3. फल की अभिलाषा छोड़कर कर्म करने वाला मनुष्य ही मोक्ष प्राप्त करता है ! कर्म ही जीवन का सार है ! कर्म करने वाला मनुष्य ही सफलता को प्राप्त करता है !
                                                                                                                           गीता 
4. हमारी अभिलाषा जीवन रूपी भाप को इन्द्रधनुष के रंग देती है !
                                                                                                                           टैगोर
5 . गरीब वह है जिसकी अभिलाषाए बढ़ी हुई है ! सुखी और प्रसन्न वह मनुष्य है जो कम अभिलाषाएं रखता है
                                                                                                                           डेनियल