एक बार सिकंदर किसे कारण से अपने सेनापति से नाराज हो गया। उसने उसे सूबेदार बना दिया। सिकंदर ने सोचा कि इतने छोटे पद पर आने से उसका सेनापति अपमानित महसूस करेगा और घुट- घुटकर मर जायेगा।
एक दिन उसने सेनापति को बुलवाया। ताकि यह देख सके कि उसकी क्या हालत है। सिकंदर उसे खुश देखकर हैरान रह गया। उसने उसे पूछा, तुम इतना खुश कैसे दिखाई दे रहे हो ? सेनापति से बनने का तुम्हे कोई दुःख नहीं है ? सेनापति ने कहा, 'बिल्कुल नहीं। पहले जब में सेनापति था, तो सैनिक मुझसे बात करने से कतराते थे। में भी अपने पद की मर्यादा का ध्यान रखकर उनसे बात करने से कतराता था। पर अब तो कोई संकोच रहा ही नहीं। अब मै उनसे खुलकर बात करता हु वे भी मुझसे एकदम सहज रहते है , वे अब भी मेरा सम्मान करते है , और हम एक-दूसरे की सेवा में लगे रहते है। में समझ गया कि सम्मान पद से नहीं बल्कि अपने स्वभाव से मिलता है। जिसमे थोड़ी भी मानवीयता होगी उसे सारी दुनिया आदर देगी। दुःख तो उन्हें होता है , जो पद के अभिमानी होते है। सिकंदर इस जवाब से बेहद प्रभावित हुआ। उसने उसे फिर से अपना सेनापति बना लिया।